आदर्श शहर
आदर्श शहर
यह कैसी बदबू है? शीतल ने स्कूल के बस स्टॉप पर आसपास खड़े पेरेंट्स से पूछा। तभी उसकी नजर पीछे गई तो देखा वहां एक बिल्ली मरी पड़ी है। शीतल घबरा गई और वहां से दौड़कर दूर खड़ी हो गई। साथ में अन्य अभिभावक भी उसके साथ हो लिए। बच्चों के विद्यालय की बस में चढ़ते ही सबसे पहले शीतल ने नगरपालिका में फोन कर उन्हें तुरंत आने की गुजारिश की।
दो घंटे के अंदर वहां की सफाई तो हो गई लेकिन शीतल आज के हादसे के बाद काफी विचलित लगी। उसने गली के सभी अपार्टमेंट के नोटिस बोर्ड पर चेयरमैन व सभी निवासियों के साथ मीटिंग का अनुरोध किया और उसी दिन शाम को मीटिंग रखी गई। शीतल ने सबके सामने प्रस्ताव रखा कि हम सभी को मिलकर अपनी गली की सफाई करवानी होगी और सड़क के दोनों और पौधों की लाइन बनवानी होगी ताकि हरियाली के साथ-साथ सब शुद्ध हवा में सांस ले सकें। सब का समर्थन मिलने पर मीटिंग में बजट निर्धारित किया गया और सप्ताह में एक बार पूर्ण सफाई की व शीघ्र ही पौधे लगाने की बात तय हुई। साथ ही गली के एक कोने में खाली पड़ी जमीन पर फूलों का बगीचा बनाने का निर्णय लिया गया।
देखते ही देखते शीतल की गली एक आदर्श गली बन गई लोग आते जाते उनकी गली, उनके मोहल्ले को भी यूं ही एनवायरमेंट फ्रेंडली बनाने की बातें करने लगे! आखिर बूंद बूंद से ही घड़ा भरता है! पहले एक गली, फिर कई गलियां और अंत में एक आदर्श शहर।