आ बैल मुझे मार

आ बैल मुझे मार

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नौकरी के पहले ही दिन शोभा जब हॉस्पिटल आई तो स्टैंड पर स्कूटी खड़ी करते देख कॉरिडोर में खड़े कुलदीप बाबू अपने मोहम्मद रफी के अवतार में आ गए और रोमांटिक गाने गाने लगे।

वह इग्नोर करते हुए आगे बढ़ गयी और बाहर एक उम्रदराज़ महिला कर्मचारी को अपना परिचय देकर उसने अपना केबिन पूछा और कॉरिडोर में खड़े आदमी के बारे में भी तब उसने बताया कि यह कुलदीप बाबू हैं और अस्पताल में इनकी बड़ी धाक है।

उम्र में तो वह चालीस या पैंतालीस के आस पास हैं पर शक्ल और रहन सहन को ऐसे रखते हैं कि जैसे बीस पच्चीस के होंपीठ पीछे उनको लोग कहते कि इस उम्र में सींग कटाकर बछड़ों में शामिल हैं,पर्फेक्ट कलर बाल, बढ़िया ड्रेसिंग सेंस, देखने मे सीनियर क्लर्क की जगह डॉक्टर लगते।उनका रोब भी पूरे अस्पताल के परिसर में खूब है सबसे सीनियर कर्मचारी जो ठहरेे।

 पर दिखने में जितने अच्छे हैं चरित्र और आदतों से उतने ही निर्लज़्ज़,उनकी सुई लच्छेदार बातों से शुरू हो कर छिछोरेपन पर ही आकर रुकती है।पुराना स्टाफ तो वाकिफ़ है पर नई लड़कियां अोक्सर उनकी हरक़तों से परेशान हो जातीं हैं, बचकर रहना इनसे बिटिया।

अब आपको मिलाते हैं शोभा से वह बेहद खूबसूरत और तेज़तर्रार और होनहार लड़की थी। उसने कम उम्र में ही प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण कर के कानपुर जिले के सरकारी बीमा अस्पताल में ,फार्मासिस्ट के पद पर पहली जॉइनिंग की।

आते ही उसे बिंदु ने जो उसकी असिस्टेंट थी, सावधान किया मैडम... कुलदीप बाबू से सतर्क रहना पूरे नारद हैं और बेहद धूर्त भी।अस्पताल की महिला कर्मचारियों की नाक में दम करना इनका प्रिय शगल है।

अच्छा, आँखे फैलाकर शोभा ने कहा।

और नहीँ तो क्या,मुँह बिचकाकर बिंदु बोली,"अक्सर ही कॉलोनी में किसी न किसी के घर बिना बुलाये जा धमकते हैं और खाने पीने के बाद झगड़ा भी करवा देते हैं पति पत्नी में बेवजह।

फिर अगले दिन ऑफिस में चटखारे लेकर उसका उपहास भी करते हैं कि "भाभी ने ज्यादा तो नहीँ मारा" या "आपके पति बहुत शक़्क़ी है,आप इतनी खूबसूरत जो हैं,अक्सर ऐसे लोग अपनी पत्नी से मारपीट और झगड़ा करते हैं"।

जान जल जाती है पर इतनी पहुँच है इनकी, तभी सालों से जमे हैं ट्रांसफर ही नहीँ होता इनका।

बिना बुलाये ये स्टाफ में सबके घर मे घर मे घुसते हैजबकि अपना परिवार और बच्चों को इस सबसे अलग रखते हैं।

"ये यहीँ रहते हैं क्या",शोभा ने पूछा?

"नहीँ खुद का मकान है, शहर में अफसरों की खुशामद भी है और उनका हाथ भी इसीलिए इनकी शिकायत करने वाली को भी समझा बुझाकर वापस भेज दिया जाता है",बिंदु सतर्क लहज़े में बोली।

 इनका नाम ज़रूर कुलदीप है पर लक्षण और करतूतें अंधेरे वाली इसलिये सब इन्हें कुल अँधेरा जी कहते है कोड वर्ड में, उसने फुसफुसा कर कहा।

ठीक है तुम चिंता मत करो,कहकर शोभा अपने काम मे व्यस्त हो गयी और कुलदीप बाबू बार-बार किसी न किसी बहाने केबिन में अपनी छवि दिखाने पधार जाते।धीरे से पास से गुजरते कुछ धीमे स्वर में ऐसे गाने कि आँखे शर्म से झुक जाएँ।

जहाँ नई उम्र के युवक अपने काम से काम रखते थे वहीँ कुलदीप बाबू सभी महिलाओं को डिस्टर्ब कर देते कभी छिछोरे वाक्यों या गानों से,तो कभी बेवजह केबिन में बुलाकर उनका लंचबॉक्स भी महिलाओं के साथ ही खुलता, कुछ तो उनका साथ देतीं पर ज़्यादातर अलग रहतीं और उन्ही को ज्यादा परेशान भी किया जाता।

अन्य कर्मचारियों के जैसे शोभा को भी अस्पताल के परिसर में ही घर मिला हुआ था लम्बी छुट्टी पड़ने पर वह घर हो आती थी।ज्यादातर रविवार को सभी लड़कियाँ ज़रूरत का सामान खरीदने साथ जातीं तो जे.के.मंदिर भी घूमने चली जातीं।

इधर शोभा की नौकरी के दिन बढ़ रहे थे, उधर कुलदीप बाबू का छिछोरापन भी।शोभा की लगभग छः महीने बाद शादी भी हो गयी अब तो कुलदीप बाबू अश्लील मज़ाक भी कर देते कभी कभी।

एक दिन कॉलोनी में रहने वाली सभी स्टाफ की महिलाएं अपने बच्चों और शोभा के साथ जे.के. मंदिर घूमने गयीं थीं और हँसी मज़ाक कर रहीं थीं कि उनकी नज़र कुलदीप बाबू पर पड़ी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ घूमने आए थे।

उनको देखकर सबके दिमाग मे एक आइडिया आया और मुसकुराहट तैर गयी।इधर कुलदीप बाबू इस सबसे बेखबर अपने परिवार के साथ पिकनिक मना रहे थे।अच्छी खासी भीड़ भी थी वहाँ।

इतने में एक औरत अपने साथ दो साल के बच्चे को गोद मे लिए रोते हुए उसके गले जा लगी और साथ मे दूसरी थोड़ी उम्रदराज़ महिला अपने साथ दो छोटी बेटियों का हाथ पकड़े कुलदीप बाबू के पैरोँ को पकड़ कर रोने चिल्लाने लगी।कि मेरी बेटी का जीवन मत बर्बाद करो दामाद जी।

" हाय-हाय तुम यहाँ इस चुड़ैल के साथ घूम रहे हो दो महीने से बच्चे पूछ रहे हैं पापा घर क्यों नही आ रहे हैँ?"

कुलदीप बाबू इस घटना से एकदम बौखला उठे और जबतक कुछ समझ पाते अच्छी खासी भीड़ वहाँ जमा हो गयीं और सिक्योरिटी के लिए तैनात कॉन्स्टेबल भी आ गईं।

अब उनके आगे कुँआ और पीछे खाई थी, इधर पत्नी,बच्चे भी आग्नेय नेत्रों से घूर रहे थे।

अरे!ये शो...शोभा है मेरे साथ काम करती है,और ये साथ मे हेड नर्स सिस्टर मेसी हैं।

अच्छा !अब आपको मुझे पत्नी कहने में भी शर्म आ रही है और मेरी माँ अब माँजी से सिस्टर मेसी हो गईं।मैं ..मैं यहीँ अस्पताल में ही रहती हूँ नहीँ तो स्टाफ के लोग मुझे कैसे जानते ?सब यहीँ है मैं अभी बुलाती हूँ सबको।

 बीना !....बीना ...सुनो तो कुलदीप बाबू चिल्ला रहे थे पर बीना यह कह कर पैर पटकती बच्चे लेकर आगे निकल गयी,"कि मैं तुम्हारी सब करतूतों को जानती हूँ, तीन बच्चों वाली औरत झूठ क्योँ कहेगी।अब तलाक़ और मुआवजे की तैयारी कर लेना।"

मैडम आप लोग कुछ बोलिये न, कुलदीप कॉलर छुड़ाते हुए बोले पर किसी ने एक शब्द न कहा।

अब भीड़ की सहानुभूति शोभा के साथ थी,कुछ लोग उसे पास के पुलिस स्टेशन जाने की सलाह दे रहे थे, पर उसने पति पत्नी का आपसी मामला कह कर पीछा छुड़ा लिया।

जब सब लोग आगे बढ़ गए और कुलदीप बाबू अकेले बचे तो स्टाफ की सभी महिलाएं पास आकर शोभा को साथ "लेकर उनका उपहास उड़ाते हुए चली गईं कि आज आया ऊँट पहाड़ के नीचे"।

आज कुलदीप बाबू को नहले पर दहला मिला था,एक हफ्ते तो शर्म से ऑफिस ही नहीँ आये।अब स्टाफ वाले पूछ देते कि भाभी ने ज्यादा मारा तो नहीं उस दिन।

इधर सबने उनके घर जा कर वस्तुस्थिति से परिचित भी करा दिया बीना (उनकी पत्नी)को कि यह सिर्फ सबक सिखाने के लिए था।हमारा आपका घर तोड़ने का कोई इरादा नहीँ था।

बीना ने शर्मिंदा होते हुए कहा कि"इनकी हरकतें ही आ बैल मुझे मार वाली थी,आप लोगों की कोई गलती नहीं एक न एक दिन इनके साथ ये होना ही था।

अब कुलदीप बाबू बाहर का तो पता नहीं पर स्टाफ के बीच इतनी बदनामी के बाद ज़रूर सुधर गए और अपने काम से काम रखने लगे।

शोभा की होशियारी और अन्य महिलाओं के सहयोग ने महौल को अब सकारात्मक जो कर दिया था।

कहानी सत्य घटना पर आधारित है,अक्सर ऐसे लोग समाज मे हर जगह मिल जाते हैं जिन्हें अपने क्षणिक मनोरंजन और कुत्सित मानसिकता के लिए किसी की मानसिक पीड़ा से कोई लेना देना नही होता। ऐसे लोगों के लिए कभी कभी ऐसे ही सबक ठीक रहते हैं।


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