खूबसूरत एहसास

खूबसूरत एहसास

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हॉस्पिटल के बेड पर बेहोश लेटी अर्चना को शायद पता भी नहीं था कि उसका अकडू पति उसके सिरहाने तीन घण्टे से बस उसी का चेहरा देख रहा है और सिसक रहा है।

मुझे स्नेहा भाभी ने उसके सामान के साथ उसके ज़ेवर और चूड़ियाँ पकड़ा दीं थीं, उसके सूने हाथों में धीरे-धीरे जीवन, ग्लूकोज और खून की शक्ल में घुल रहा था।

मैं रवि, अर्चना का पति बेहद अनुशासन पसन्द था बचपन से और उससे भी ज़्यादा ज़िद्दी और अकड़ू, पर शर्मीला भी था तो अपनी भावनाएं जल्दी नहीं बाँट पाता था। मेहनती और मेधावी था इसलिए जल्दी ही अच्छे सरकारी पद पर रेलवे में इंजीनियर की नौकरी भी पा गया। मेरे जीवन साथी की तलाश आकर छोटे कस्बे की अर्चना पर रुकीगौरवर्ण, सुन्दर और सुघड़, उसने हर तरह से मेरा साथ दिया पर मैं न जाने कब से उसकी भावनाओं को बिना समझे बस मनमानियों की दुनिया में जिये जा रहा था। अगर वह कह देती कि शेव बनवा लीजिए तो मैं कई दिन उसको चिढ़ाने के लिए ही नहीं बनाता, उसके फेवरेट कलर को कम पहनता। उसे सजना सँवरना पसन्द था पर मैं उसे गंवार कह देता, सुबह-सुबह उसकी चूड़ियोँ की आवाज़ जब वो चाय लेकर आती मेरे लिए मेरी नींद खराब कर डालती, इसलिये उसे कड़े लाकर दे दिए।

पायल अब शायद ही कोई-कोई पहनता होगा पर अर्चना लपक कर पायलें ही पसंद करती, मुझे सिंदूर भी थोड़ा सा ही लगाना अच्छा लगता पर वो हँस कर कहती," ये आपकी सलामती की निशानी है और कोई मुझे गंवार कहे तो कह ले।"

ऊपरी नाराज़गी तो मैं उसे दिखलाता पर मन में मुझे भी अच्छा लगता कि ये मेरे होने का एहसास है उसे कस्बे से मेगा सिटी की नागरिक में बदलने की कोशिश में ही लगा रहा।

उसकी पूजा करने की आदत, घण्टी और आरती की आवाज़ पर एक दिन मैंने उसे डाँट क्या दिया कि अब वह मेरे नौकरी पर जाने के बाद ही पूजा करती या ये कहूँ कि उसकी उपस्थिति की हर आवाज़ को मेरी आधुनिक सोच ने दबा डाला किसी कोने में।

किसी से फ़ोन पर बात करती तो उसकी खिलखिलाहट से मेरे अनुशासन का किला दरकने लगता, अब वह खुद में सिमटने लग गयी थी और मैं यह देखकर खुश था।


अब तो हम दोनों दो बच्चों के माता पिता भी बन चुके थे और बच्चे अपनी पढ़ाई लिखाई में मस्त थे। अर्चना ने हर फ़र्ज़ निभाया बिना शिकायत पर मैं शायद उसको इतना बदल चुका था कि उसका मन नहीं पढ़ पाया।

कुछ दिनों से थकी लग रही थी पर मैंने पैसे देकर फ़ुरसत पा ली, कि अकेले जा कर दिखा लो खुद को ...अब नौकरी करूँ या तुम्हें लेकर घूमता फिरूँ।

वह चली जाती और एक दिन डॉक्टर के ही फ़ोन पर भागा हॉस्पिटल आया तो वह बेहोश पड़ी थी, बेड पर। आज वो साथ में पड़ोस की स्नेहा भाभी को लायी थी ।

डॉक्टर विकास ने मुझे लगभग फटकारते हुए कहा,"मिस्टर रवि...कब से इनकी तबियत खराब है और ये अकेले आतीं रहीं। इन्हें डेंगू हुआ है और प्लेटलेट्स भी डाउन हो गयी है। आप इन पर ध्यान नहीं देते क्या?"

आज डॉक्टर ने मुझे आईना दिखाई दिया था, मेरी बदसूरत शक्ल का, अर्चना के पास मेरे मित्र की पत्नी को छोड़कर घर आया तो बच्चे कोचिंग से आ चुके थे।

रसोई घर और कमरे अपनी मालकिन के बिना अनाथ लग रहे थे, आज नीरवता से घबराहट हो रही थी मैं चूड़ियों और पायल की आवाज़ को खोज रहा था।

सूना घर बहुत डरा रहा था माहौल वैसा ही शांत था जैसा मुझे पसन्द था पर आज ये दिल दहला रहा था।

घबराहट हो रही थी उसके बिना कि अगर उसे कुछ हो गया तो क्या करूँगा रात भर जागता रहा और सोचता रहा कि उसके आराध्य लड्डू गोपाल से ही प्रार्थना करूँगा ।


पहले तो मुझे यह सब व्यर्थ लगता था पर सुबह जल्दी उठा तो लड्डू गोपाल को स्नान करवा कर वैसे ही तैयार किया जैसे अर्चना करती थी, बच्चों की मदद से चाय और नाश्ता बनाकर हॉस्पिटल गया।

अब अर्चना को होश आ चुका था और वो मुझे पूजा का तिलक लगाए देखकर मुस्कुराई भी। दो दिन बाद उसे वार्ड में शिफ्ट किया गया ।

आज मैंने अपने शर्मीले स्वभाव को पीछे छोड़कर अपने अनगढ़ हाथों से खुद उसके बाल सँवारे, बिंदी लगाई और चूड़ियाँ हाथों में पहना दीं। जब उसकी माँग में सिन्दूर लगाकर उसके पास फूल रखे तो उसकी आँखें भर आईं, शायद उसे मुझसे ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी।

मोबाईल में उसका चेहरा दिखा कर पूछा ठीक तैयार किया है तो उसने क्षीण मुस्कान से कहा पहली बार आपने सजाया है मुझे मैं बहुत खुश हूँ।

पाँच दिनों के बाद अस्पताल से जब उसे घर लाया तो साफ सुथरा घर उसका स्वागत कर रहा था। मैंने बच्चों से कलश चावल से भरकर लाने को कहा।

"अर्चना आज इसे गिरा कर फिर से घर मे रौनक भर दो।" जब उसे अंदर लिटाकर चाय बनाकर और ब्रेड सेक कर लाया तो उसने मुझे अपने पास बैठने को कहा।

बच्चे तो कोचिंग जा चुके थे, पर मेरा गला बुरी तरह भर गया था। मैं..मैं बहुत डर गया था तुम्हें इस हालत में देखकर।

पर मैं इन पाँच दिनों में आपके नए-नए तिलकों पर रीझ गयी रवि...आपने मेरे लिये कान्हा से रोज़ प्रार्थना जो की

शाम को मैं खुद अपनी पसंद की पायल लाया और उसके पैरों में अपने हाथों से पहना कर बोला "मुझे हर उस आवाज़ से प्यार हो गया है जो घर में तुम्हारे होने का एहसास कराती हो, तुम अब ऐसे कभी मत सोना... तुम सोती हो तो घर में सूनापन छा जाता है। तुम सही कहती थीं ये चूड़ियाँ, पायल ये पूजा की घण्टी मेरा आत्मविश्वास बढ़ाती थीं कि मेरी गृहलक्ष्मी मेरे साथ है मकान को घर उसकी मालकिन ही बनाती है, जो बात तुम कहकर न समझा पाईं वह तुम्हारी बेहोशी ने बता दी "और उसने जवाब में मुस्कुरा कर मेरे हाथों में अपना हाथ रख दिया।

मेरा घर अब फिर चहकने लगा था उसकी उपस्थिति से, उस की कद्र अब मैं सीख गया था।



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