डिब्बा
डिब्बा


"ये किसके यहाँ से मिठाई उठा लाये,वो बड़े लोग हैं डिब्बा ही स्टेन्डर्ड बताता है कि चीज़ ऊँची दुकान की है",मधु ने अपने पति से बिगड़े स्वर में कहा।
अरे, शांति निकेतन वालों की ही है पर उनकी दुकान में डिब्बे खत्म थे तो मैंने पड़ोस वाले के ही डिब्बों में पैक करवा ली, वैसे भी खानी तो मिठाई ही है डिब्बे को थोड़ी न खाना है, गोपाल ने लापरवाही से कहा।
तुम भी नमेरी नाक कटवा कर रहोगे, मेरे मायके वाले बड़े लोग है,ये सब नहीँ खाते फ़ेंक देँगे या नौकर को दे देंगे, मधु का रोष उग्रता पकड़ता जा रहा था।
मम्मी बस भी करो टाइम कम है जल्दी तैयारी करो डिब्बे को इतना तूल क्योँ दे रही ह
ो, जाना तो उसे कबाड़ में ही है न सुबह, बेटे ने समझाते हुए
कहा ।
सौरभ तुम अभी छोटे हो, तुम क्या जानो ?
खाई तो मिठाई ही जाती है पर इस्तेमाल होने तक डिब्बा मिठाई की भी सुरक्षा करता है और लाने वाले के नाम की भी, कि किस दुकान से खरीदी है, तब तक उसे सम्भाल कर रखा ही जाता है ।
जब मिठाई खत्म हो जाती है तब डिब्बा कबाड़ में फेंका जाता है, समझे कुछ मधु ने अपने चौदह वर्ष के बेटे को समझाते हुए कहा।
सौरभ ने गहरी नज़रों से देखते हुए ठहरी आवाज़ में कहा, "हाँ मम्मी समझ गया, "जैसे दादा-दादी अब ओल्ड एज होम में फ़ेंक दिए गए है आप दोनों के मिठाई खाने के बाद।"