चरित्रहीन
चरित्रहीन
तुम यहाँ क्या कर रही हो ? चलो अन्दर जाओ" और पति के बेहद क्रोधित रवैये को देखकर पूर्णिमा चुपचाप गेट के अंदर चली गयी।
पूर्णिमा को अभी कॉलोनी में आये कुछ दिन ही हुए थे जबकि उसके पति करीब तीन महीनों से वहीँ रह रहे थे। आते ही उसे सख्त ताक़ीद कर दी गयी थी कि सामने वाले पड़ोसी से कोई वास्ता नहीँ रखना है। सामने वाले पोर्शन के बीच में गली थी और अक्सर वह छत पर एक बुज़ुर्ग महिला के साथ एक अत्याधुनिक स्त्री को देखती धीरे-धीरे एक महीना होने को आया पर उस परिवार से सब ने दूरी ही बना रखी थी।
यहाँ तक कि पूर्णिमा के पति सुयश गुप्ता ने उन्हें अपने घर कथा में भी आमंत्रित नहीँ किया।
आज अपनी पत्नी को उस बदनाम महिला से बात करते देख सुयश का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया।"कहा था तुम्हें मैंने कि सामने वाली महिला से बात मत करना पर तुम्हारे कान पर जूँ नहीँ रेंगती", मिस्टर गुप्ता ने चिल्ला कर कहा।
पर मैं सिर्फ़ उनसे डॉक्टर का पता पूछ रही थी,फिर उस महिला में खराबी क्या है,सुबह नौकरी पर जाती है और शाम को घर आती है।
तुम घर के अंदर रहने वाली ,क्या जानो वह बड़ी बदनाम औरत है,आये दिन जब देखो तब उसके घर से कोई न कोई मर्द बाहर निकलता है।
विश्वास न हो तो किसी से भी पूछ लेना,सुयश ने क्रोध को लगाम लगाते हुए कहा।
अगले दिन जब गुप्ता जी से मिलने वर्मा जी आये तो उन्होंने भी सामने वाली पड़ोसन से बात न करने की सलाह दी।
पूर्णिमा ने कौतूहल वश पूछा कि सामने वाली महिला में आखिर खराबी क्या है?
ख़राबी ...अब आपको क्या बताऊँ भाभी जी मुहल्ले के किसी घर से उसे नहीँ बुलाया जाता,कई लोगों को मैंने रात को उसके घर जाते देखा है,बड़ी चरित्रहीन है वह।
पर उन्ही पड़ोसियों को आपने हमारे घर कथा में बुलाया था,तब वो चरित्रवान कैसे हो गए पतिदेव?
जब वह स्त्री चरित्रहीन हुई तो वे पड़ोसी चरित्रवान कैसे हुए उनके बिना गिरे ,भागीदारी तो दोनों की बराबरी की है।
क्योँ हैँ न भाईसाहब ?
उसने गहरी आँखो से वर्मा जी को देखते हुए कहा।
और वर्मा जी निरुत्तर हो गए क्योंकि पूर्णिमा ने सुबह ही उन्हें सामने वाली पड़ोसन के दरवाजे पर देखा था।
करीब दो महीने में पूर्णिमा हर पड़ोसी के बारे में जान चुकी थी,वर्मा जी के बारे में भी और सामने वालों के बारे में भी।
वह दोनों सास बहू थीं जिनका पूरा परिवार एक हादसे में खत्म हो चुका था वह अपनी कोठी बेंचकर इस कालोनी में एक साल पहले ही आईं थी और अपने आप में ही सिमटी रहती थीं।
यदि वह अपने घर में किसी भी पुरुष हेल्पर को बुलातीं या किसी पड़ोसी से मदद माँग लेतीं तो सब कोई न कोई स्टिकर चरित्र के लिए तैयार रखते।
वर्मा जी खुद सबसे पुराने पड़ोसी थे जो स्वयं तो हँस कर बात करते पर फिर उसी परिवार के बारे में बढ़ चढ़ कर बात करते,धीरे धीरे वो बदनामी फैली लोगों ने किनारा करना आरंभ कर दिया उस परिवार से।
पर अक्सर पूर्णिमा की बात चीत सामने वाली पड़ोसन से हो जाती पर सुयश के सामने नहीँ।अब उन दोनों ने फ़ोन नम्बर भी आपस में बदल लिए थे
अब तब वह काफी कुछ जान चुकी थी कि उसका नाम रिया है और वह एक मल्टी नेशनल कम्पनी में कार्यरत है और अक्सर उसे देर भी हो जाती या कोई सहयोगी घर छोड़ देता तो भी लोग पीठ पीछे खूब चटखारे लेकर बात करते।
मुझे तो वह ऐसी बिल्कुल भी नहीँ लगती।
पूर्णिमा अब भी रिया के बारे में सोच रही थी कि उसका फ़ोन भी आ गया,क्या मैं तुमसे पहली और आखिरी बार कॉफ़ी शॉप में मिल सकती हूँ। हाँ हाँ क्योँ नहीँ ,पूर्णिमा ने कहा।
और तकरीबन एक घण्टे में वह दोनों प्रसिद्ध कॉफ़ी शॉप में बैठीं थीं।
तुम अकेली मेरी सहेली हो यहाँ जिससे मेरी हेलो हाय हो जाती है ,अब मुझे कम्पनी कैम्पस में ही घर मिल गया है और कॉलोनी के विषाक्त माहौल से छुटकारा भी ,रिया ने तसल्ली भरे स्वर में कहा।
हाँ रिया मैं भी दिल से खुश हूँ कि तुम दोहरे चरित्र वाले लोगोँ से दूर स्वस्थ माहौल में रहोगी।
बड़ा कष्ट होता है पूर्णिमा! इस दोगली मानसिकता पर जहाँ भागीदारी तो पुरुष की भी होती है पर स्टिकर अकेली स्त्री पर क्योंकि लगाना आसान है और साथ देतीं है हम जैसी ही महिलाएं जो कभी यह नहीँ सोचतीं की यदि ये बात जब जिसके लिए कही गयी है वो सुनेगी तो कितना बुरा लगेगा।
अगर मेरी कम्पनी का ड्रेस कोड आधुनिक है तो वही पहनूँगी और दुर्घटनाओं की वजह से जीना तो नहीँ छोड़ दूँगी।मुझे खुश देखकर मम्मी भी अब दुःख भूलने लगी हैं,रिया आँसू पोंछ कर बोली।
अच्छे कपड़े पहनना,किसी पुरुष से बात करना देर हो तो सबको जवाब देना बड़ा अब मुश्किल हो रहा है,मेरे लिए।
पर रिया ,मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ।
पूर्णिमा ...अगर ठीक लगे तो मुझसे बात करती रहना।
हाँ रिया ,भरोसा रखो,मैं तुम्हें हमेशा याद रखूँगी,मैं सम्मान करती हूँ तुम्हारे ज़ज़्बे का जो इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी धीरज रखे हो। समाज ने लिबास तो अपडेट कर लिया पर सोच पिछड़ी ही रह गयी
कॉफ़ी खत्म करके दोनों घर वापस लौट आईं और हफ्ते भर के अंदर रिया और उसकी सास भी कॉलोनी छोड़ गयीं।
वर्मा जी ने रिया से जाते जाते भी इस अप्रत्याशित निर्णय पर पूछ लिया कि मैडम क्या बुरी थी हमारी कॉलोनी?
भरोसा ...मिस्टर वर्मा इतना कहकर वह कार में बैठ गयी।
पर एक अनुत्तरित सवाल अब भी था कि अकेली स्त्री पर स्टिकर लगाना कितना आसान होता है।
