002 : यात्रा - अजगर
002 : यात्रा - अजगर
आजाद परिंदा
जगर का नाम तो बहुत सुना है परंतु कभी देखने का अवसर नहीं मिला। जहां तक मुझे याद आता है किसी सांप घर या किसी चिड़िया घर में भी कभी दर्शन नहीं हुए। जब जब अजगर की बात होती है तब दिमाग के किसी कोने से एक तस्वीर निकलती है जिसमे एक बहुत बड़ा सा अजगर एक पेड़ की शाखा के साथ लिपटा हुआ है और अजगर का साइज पेड़ से भी बड़ा। ऐसा महसूस होता है को यह तस्वीर बचपन में किसी किताब में देखी थी।
अभी जिस सोसाइटी में मैं रह रहा हूं वो एक पहाड़ी के चारों तरफ बनी हुई गेटेड रेजिडेंशियल सोसाइटी है। कई बार पहाड़ी के ऊपर तक भी जा चुका है और पहाड़ी के चारों तरफ चक्कर लगाना तो साप्ताहिक कार्यक्रम है ही। यकीनन पहाड़ी का अपना एक ईको सिस्टम होगा परंतु मुझे पहाड़ी पर तरह तरह के सांप दिखाई दिए , कुछ मोर भी दिखाई दिए , और भी कुछ छोटे छोटे जानवर दिखे परंतु कभी कोई बड़ा जानवर दिखाई नहीं दिया।
पिछले सप्ताह जब साइक्लोन के कारण मूसलाधार बारिश कहर बरसा रही थी तब सोसाइटी के ही एक सदस्य से खबर मिली कि कम्युनिटी हॉल के एक पेड़ पर अजगर लिपटा हुआ है। शायद मूसलाधार बारिश के कारण अजगर पहाड़ी से नीचे आ गया होगा।
मूसलाधार बारिश में घर रहा जाए या फिर जिंदगी का पहला अजगर फैसला करना मुश्किल नहीं था इसीलिए बिना सोचे समझे अजगर देखने बारिश में ही निकल पड़ा। पेड़ तकरीबन 25 से 30 फीट ऊंचा था और उसके बीचों बीच जहां पर मोटे ताने से कई छोटी ब्रांच निकल रही थी ठीक वही एक मोटा सा अजगर लिपटा हुआ था ठीक उसी अंदाज में जैसा की कभी किताब में देखा था। हालांकि अजगर और पेड़ दोनो काफी बड़े थे परंतु कहीं न कहीं दिमाग में बनी तरवीर को ध्वस्त भी कर रहा था। अजगर पेड़ के सामने बौना लग रहा था। शायद पहाड़ी का ईको सिस्टम बड़े जानवरों को भी आधार प्रदान करने में समर्थ है।
पिछले कई सालों में अजगर नहीं दिखा शायद उसे पहाड़ी से नीचे आने की जरूरत ही नहीं होगी पहाड़ी पर ही उसकी जरूरतें पूरी हो रही होंगी परंतु इस बार बारिश के कारण नीचे आना पड़ा तो जाहिर है उसे अपनी जरूरतों के लिए भी नीचे के साधनों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।
नीचे के साधन यानी की वो छोटे छोटे पिल्ले जो पिछले दो महीने में पैदा होकर बाहर आ गए हैं। यानी एक पिल्ला और ढेर सारी पिल्लियां।
अजगर ने खाने के लिए पिल्ले पर ही हमला कर दिया और एकमात्र पिल्ले को निगल गया। पिल्ला जो बहुत सारी कुत्ता भ्रूण हत्या के बाद संयोग से बच गया था और एकमात्र ही था अब खत्म हो गए। एकमात्र पिल्ले को अजगर निगल गया।
अगर साधारण गणित का हिसाब लगाया जाए तो पिल्ले के खाए जाने की संभावना पिल्लियों के खाए जाने की संभावना से लगभग 17 या 18 गुना कम थी फिर भी पिल्ला खा लिया गया और सारी की सारी पिल्लियां सुरक्षित रह गई।
अब यह मसला मेरे छोटे से दिमाग में समझ नहीं आया और बहुत लोगों ने समझाया की यह मात्र संयोग है परंतु बहुत दिमाग लगाने के बाद आखिर असली मामला समझ में आ ही गया।
काफी सोचने के बाद आखिर मामला समझ आ ही गया। हाल ही में यूक्रेन युद्ध की तस्वीरें दिमाग में घूमने लगी और समानता को इग्नोर कर पाना मुमकिन नहीं रहा। युद्ध शुरू होते ही यूक्रेन की महिलाओं ने लड़ने की बजाए भाग जाना उचित समझा जबकि आदमियों ने बकायदा हथियार उठा का दुश्मन का सामना करते हुए मरना पसंद किया , कुछ आदमी भी भागना चाहते थे उन्हें फसाए रखने के लिए महिलाओं द्वारा बकायदा मॉडलिंग की गई। कई ऐसे किस्से भी सुनने को आए थे जहां सालों से यूक्रेन से बाहर रहने वाले आदमी देश के लिए लड़ मारने के लिए वापिस लौट आए। इसके विपरित महिलाओं ने शांति काल में सब सुविधाओं का इस्तेमाल किया और जब देश का कर्ज लौटने का वक्त आया देश से भागने का फैसला कर लिया। वैसे यह कोई इकलौता या नया मामला नहीं है विश्व युद्ध के दौरान बनी व्हाइट फेदर सोसाइटी इसी व्यवहार का बेहतरीन उद्धरण रहा है।
शायद यह मानसिकता सिर्फ इंसानों में ही नहीं कुत्तों में भी पाई जाती है जहां ढेर सारी पिल्लियाँ अजगर देख कर भाग निकली वही एकमात्र पिल्ला अजगर के सामने डट कर खड़ा हो गया और आखिर कार मार डाला गया। कहना मुश्किल है कि यह व्यवहार पिल्लियोँ ने किसी से सीखा या पिल्लियो ने सिखाया।
टीचर कौन और शिष्य कौन निर्धारित करना मुश्किल या शायद असंभव ही है।