ज़्यादा
ज़्यादा
ऊँचे महलों के बीच छोटी सी झोपड़ी
आँगन के कोने मे जलता दिया,
उसकी लड़खड़ाती लौ ने तस्वीर बनाई
जिंदगी ने उसे कुछ ज्यादा ही दिया,
विरासत में मिली छत ने
जब बरसात में राज खोल दिया,
टूटे बर्तनों में समेटा बादल को
बूंदों के साथ गुनगुनाने का मौका मिला,
फ़टी हुई अंगोछी की पोटली में
जब चला खुशियों को समेटे हुए,
खुद के लिये न बचा हो शायद पर
राह मे अंजानो का दिल जीत लिया,
माना,बरगद की बेलों मे नया जड़ नहीं आया
पंछियों ने फिर एक बार बैठक में घर नहीं बनाया,
पर इतना संशय क्यों उसे भविष्य को लेकर
आँगन के दिये ने नई तस्वीर तो बनाई,
जिंदगी एक बार फ़िर उसके लिये कुछ ज्यादा ही लाई
जिंदगी ने उसे कुछ ज्यादा ही दिया।।
