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यथायथ यथार्थ

यथायथ यथार्थ

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दिनों-दिन रेत की तरह फिसलता जा रहा है समय,

अन्वेषण कर रहा हूँ प्राप्ति करने अपना नया परिचय।


जीवन में होगा कई नए चेहरों से साक्षात्कार,

लेकिन पुराने चेहरों का नहीं करना है तिरस्कार।


सम्मुख होंगी कई नई-नई विषम परिस्थितियाँ,

मनःस्थिति विचलित नहीं होना देखके इनकी उपस्थितियाँ।


क्षण-क्षण हो रहा है अतिवाहित,

वर्तमान क्षण हो जायेंगे अविस्मरणीय अतीत।


रखना होगा मन को निर्मल,

लाभ नहीं है होके व्याकुल।


हैं इस सीमित जीवन अनेक अनुभूतियाँ,

मन में चिरस्थायी हैं अनेक स्मृतियाँ।


कहाँ है कोई विकल्प,

सब कुछ लगता है कुछ अंतराल पर एक गल्प।


जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक है स्वस्थ्य जीविका धन,

समयोचित अनिवार्य है ईंधन संसाधन विद्याधन।


सर्वदा सत्य है यह यथायथ यथार्थ,

सार्थक सुकर्मों से ही होगा जीवन चरितार्थ।।


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