यही है ज़िन्दगी
यही है ज़िन्दगी
क्या हुआ ग़ुनाह, जिसकी वो सज़ा दे रहें हैं
ख़ुद जख़्म दे के, दवा दे रहे हैं,
हर बार सोंचता हूँ, थोड़ा और रुक जाऊ
क्या पता वो जीने की कला दे रहें हैं ।
क्या हुआ ग़ुनाह, जिसकी वो सज़ा दे रहें हैं
ख़ुद जख़्म दे के, दवा दे रहे हैं,
हर बार सोंचता हूँ, थोड़ा और रुक जाऊ
क्या पता वो जीने की कला दे रहें हैं ।