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Rekha Bora

Abstract

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Rekha Bora

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यह किसकी आवाज़

यह किसकी आवाज़

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यह किसकी आवाज़

सुन रही हूँ मैं

अपने स्वप्नों की

विचित्र छाया तले

क्या यह मेरी आवाज़ है

पर नहीं शायद

तुम्हारी आवाज़ है यह

लेकिन मैं पहचान नहीं पा रही

सुनाई नहीं दी है न

तुम्हारी आवाज़

एक लम्बे अरसे से

क्यों मिल नहीं पायी तुमसे

रंगहीन इन्द्रधनुष सी

मध्यान्ह, सन्ध्या और रात्रि के बाद

मैं जान नहीं पा रही

शायद तुम

मेरे नीले आकाश का अभाव हो

जहाँ अटक जाती है मेरी

सारी हँसी और रुलायी

जैसे नाव बिना माँझी के

किसी निर्जन द्वीप में



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