ये तब भारत कहलाया
ये तब भारत कहलाया
सर पे हिमालय जिसके,
चरणों में सागर है,
लाखों बरस की एक,
सभ्यता उजागर है,
जिसको पावन करती,
अविरल गंगा धारा,
जगतगुरु जिसको ,
कहता था जग सारा।
ऋषि -मुनियों ने आकर,
जहां ज्ञान का दीप जलाया,
उस दीपक में तपकर ही,
ये भारत कहलाया।।
जिस रज के कण-कण में,
बहती गीता वाणी,
जहां वीर सपूता थी,
नारी भी क्षत्राणी,
जिस धरती की पूजा,
सब देवता करते हैं,
उस रज का तिलक लगाना,
हम सौभाग्य समझते हैं।
जिस धरती की ख़ातिर,
वीरों ने अपना लहू बहाया है,
उनके लहू ने सींचा है,
ये तब भारत कहलाया है।।
जिस देश में प्रेम के बंधन की,
के गाथा बहती हैं,
प्यार की हर एक मूरत में,
एक राधा रहती हैं,
जहां भक्त शिरोमणि सुदामा,
भगवान को अपने गले लगाते हैं,
उस राम कृष्ण की धरती को,
हम शीष नवाते हैं।
जिस धरती ने दुनिया को,
बुद्ध का मार्ग दिखाया है,
उसी राह में चलकर ही,
ये भारत कहलाया है।
जिस देश में मौसम बदलें तो,
छह ऋतुएं आती हैं,
सावन में लगते हैं झूले,
बसंत फ़ूल खिलाती है,
विविध जहां हैं लोग और,
भाषाएं भिन्न हैं सारी,
इस भिन्नता में भी एकता अपनी,
लगे अनूठी प्यारी,
मानवता का विश्व को जिसने,
ज्ञान सिखाया है,
उस ज्ञान की ज्योति से सजकर ही,
ये भारत बन पाया है।
