ये मोहब्बत हैं
ये मोहब्बत हैं
माना कईं दिनों से मुलाकात नहीं हुई,
तो यूं अकेले में छत पर बैठता कौन है।
नज़र तो नज़र है उसे भी लग जाय,
यूं रात भर चांद को तकता कौन है।
उसकी गली मेें जाओ दीदार तो होगें,
यू खुलेआम महबूब से मिलता कौन है।
वैरभाव युगों से हैं इश्क़ और लोगों में,
यूं चाह मेें दुनिया वालों से डरता कौन है।
मुहब्बत रंग लाती हैं गर दिल से होतो,
मगर यहाँ ता-उम्र साथ चलता कौन है।
ये माना कि है चाहत की राहें कठिन,
लेकिन यूं बीच सफर से लौटता कौन है।
ये मुहब्बत मंज़िल तक पहुंच भी जाय,
मगर यहाँ मेरी तरहा 'जोगी' बनता कौन है।