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Bharat Sanghar

Abstract

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Bharat Sanghar

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डर लगता हैं

डर लगता हैं

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नींद है आखों मेें पर सोने से डर लगता है।

अब तो उसके ख्वाबो से भी, डर लगता है॥


सफर में किसी के साथ चलना चाहता हूं।

फिर उससे बिछड़ने से भी, डर लगता है॥


उसको गले लगाकर मुझ में समा लुं, मेरी 

सांसो से आयेगी खुशबू से, डर लगता है॥


मुहब्बत करना मेरा दिल चाहता है, मगर

इश्क़ मेें बेवफ़ाई से बहुत, डर लगता है॥


दोस्ती यारी और रिश्तेदारी सुकून देती है।

मगर उसमें छुपे स्वार्थ से, डर लगता है॥


चेहरे पर हंसी है फिर भी नहीं हंसता हूं ।

बिना आंसुओं के रोने से, डर लगता है॥


बरसाती मौसम बहोत भाता है "भरत"

मगर बिजली की चमक से, डर लगता है।


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