ये लोग
ये लोग
चांदनी रात में ही अक्सर
लोग चांद में दाग ढूंढ़ते हैं
अपनी ख्वाहिशों के लिए भी
कोई तारा टूट जाए, सोचते हैं।
पीते है, वो तो बदनाम है
ना पीने वालों के मुखौटे हजार है
कहर ढा के किसी ज़िन्दगी में
ये पाप गंगा में धो आते हैं।
शारीरिक कमी पर जो
टिप्पणी करते हैं
मानसिकता को अपनी
व्हीलचेयर पर बिठाते हैं।
पीकर आराम से दूध वो
थैली गाय के लिए छोड़ देते हैं
फर्नीचर खरीदने वाले लोग
अब हवा खरीदते नजर आते हैं।
उसूल अब कोई मायने नहीं रखते
भारी जेब अब इंसाफ होते हैं।
