ये जिन्दगी की डगर
ये जिन्दगी की डगर
जिन्दगी की डगर,
कहीं रेत है तो कहीं पत्थर..
आसान नहीं ये सफर,
पर चलना है तुझे अपनी मंजिल की और ..
रुक जाए तो कहीं,
थक जाए तो कहीं उस रब को याद कर,
पर चलना है तुझे हमेशा यूं ही मुस्कुराकर...
क्यूं की ये है जिन्दगी की डगर,
कहीं रेत है तो कहीं पत्थर....
ये कारवां ही तेरे जुस्तजू है..
जिसमें मुकम्मल होने को तेरे सुनहरी ख्वाहिशें
हैं..
लाखों सैलाब आयेंगे तेरे हसीन ख्वाहिशों की और ..
फिर भी ढूंढते रहना उस कस्ती को,
जो ले जाएं तुझे साहिल की और..
हौसलों को कर बुलंद इतना की
मंजिल की हर बुलंदियों को छू जाए..
मगर बुलंदियों के गुरूर में इतना भी मसरूफ ना हो जाना
मेरे दोस्त की अपनी जमीर ही तुमसे रूठ जाए..
दास्तान- ए- ज़िन्दगी का तू मुसाफिर है यहां,
अपनी जमीर को यूं रुसवा ना कर..
नग्मा सफर का तू हर पल सुनाए जा,
अंदाज-ए-बेरुखी से यूं जिन्दगी को ठुकराया ना कर..
क्यूं की ये है जिन्दगी का डगर,
कहीं रेत है तो कहीं पत्थर ....
अनजाने राहों में मिल जाते हैं कुछ हमसफर,
कुछ दोस्त बनकर ,तो कुछ हमसाया बनकर,
जो जिंदगी के पन्नों में याद रहते हैं उम्रभर,
माना कि हमारे बीच कई फासले हैं ,
मगर ए - दोस्त ये दिलों की धड़कन
हमें एक दूसरे का हम साया बनाते हैं।
दर्द को अपनी ताकत बनाया कर..
गुरबत के बादल छूट जाएंगे..
बंदिशें भी तुझसे रूठ जाएंगी ..
डर न जाना कहीं,
दिल से हमेशा मुस्कुराया कर..
क्यूं की ये है जिन्दगी का डगर,
कहीं रेत है तो कहीं पत्थर..