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ये इश्क़ नही आसां

ये इश्क़ नही आसां

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कभी कभी तेरे न होने का एहसास कराती है,

ये अश्क़ भी इन अंंखियों से कैसा खेल कराती है।

रहती है वो मौजूद हर वक्त मेरे जेहन में,

फिर भी उनसे मिलने को हर जतन कराती है।


ख़्वाबों में ही घायल हो जाते हैं उनके दीदार से

पर हकीकत में तो ये निगाहें उनसे पर्दा कराती हैं

चाँद तारो को आसमान से जमीं पर ले आते हैं,

आशिकी भी देखो क्या - क्या कारनामे कराती है।


भूल जाते हैं सब कुछ उसकी यादें नही मिटती,

हमसे जुदा होकर भी ये अपना एहसास कराती है।

इश्क़ में हर कदम सोच कर बढ़ाना "विपिन",

दिल्लगी भी बड़े मुश्किल इम्तिहान कराती है।


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