ये है ज़िन्दगी.....
ये है ज़िन्दगी.....
क्या है ये ज़िन्दगी किसको पता,
अगर ये पता होता तो ये तो कभी नहीं दिखता,
समय चलता रहता कभी कभी ये खेल दिखाता,
कभी किसी की नसीब में होता किसी की ना होता,
नसीब तो एक वहाँ बैठे सबका लिखता,
अगर ये है ज़िन्दगी, तो मैं जीना नहीं चाहता
उपरवाले ने भी बड़ी मुश्किल में ये बनाया होगा,
लाचार हो के तकलीफ देखता होगा,
ये बच्चे भूखे पेट खाने को तरसते होंगे
उसे क्या मालूम किसी का फेंका हुआ उसके नसीब में होगा,
जो भी कोई फेंका वो भी तो इंसान होगा,
जरूरत से ज्यादा सोच के फेंका होगा,
सोच सोच के अंतर अभी कौन समझायेगा?
की जरूरत से ज्यादा को दूसरों में बाँटना होगा,
इसे देख के समझ आये तो कुछ अच्छा ही होगा,
अगर ये है ज़िन्दगी, तो इसे क्या ऐसे जीने होगा?
ये क्या अपनी पिछला कर्मों का फल?
क्या ये बीते हुए कल की कुछ इस पल?
ये क्या संघर्ष है जीने का ? या हार के जीतने का पल?
क्या ये मन में जगाता है कुछ सवाल?
या फिर दिल को छू के मचाता हलचल !
पता नहीं ये है ज़िन्दगी के भी कुछ पल
अब कुछ सोच के कुछ करना है,
सोते हुए इंसानियत को जगाना है,
दुनिया के झूठे नियम को बदलना है,
जीओ और जीने दो का मन्त्र फैलाना है,
गरीबी भुखमरी को समाज से भगाना है,
सब मिल जुल के सब में खुशियाँ बाँटना है,
ये धरती को हरा भरा बनानी है,
सबकी ओठों पे मुस्कान लानी है,
ये सब शुरुआत पहले अपने से करनी है,
तब कहे "ये है ज़िन्दगी ", हमें जीना है।