ये भी क्या जिंदगी है
ये भी क्या जिंदगी है
कुछ अजीब सी हो गई है जिंदगी
नाराज़ सी...
खामोश सी...
कुछ अलग सा मंंजर आया है जीवन में
जिंदगी ना चहक रही है
ना महक रही है...
कुछ अंजान से मोड़ पर है जिंदगी
पता नहीं आवाद है
या फिर बर्बाद...
कुछ दर्द सा होता है जीने में
क्यूंकि अपने पराए हो रहे हैं
जिसे अपना माना वो तो कब के दिल से निकाल चुके हैंं
पर फिर मैं सोचती हूं
हां शायद वो कभी अपने थे ही नहीं
हां शायद वो कभी सच्चे थे ही नहीं
हां शायद इस जिंदगी को मेरी कदर ही नहीं
या फिर मुझे जिन्दगी की नहीं
सुना था प्यार कभी फासला नहीं देेेखता
सुना था प्यार कभी ख़त्म नहीं हो सकता
पर ये क्या ज़िन्दगी
तू तो यहां भी मुझे गलत साबित कर गया
कभी साातवें आसमान पे थी खुशियां मेरी
एक बार में सब छीन गई
अब तो लगता है जिंदगी की गाड़ी से
चैन खींच कर उतर जाऊँ
लेकिन ये जिंदगी है
आसानी से पीछा नहीं छोड़ती।