यादें
यादें
यादें जब मोती बन कर
आँखों से बरसती हैं,
तब नीले और काले रंग में डूबा
सिसकियाँ भरता दर्द
काग़ज़ की कोरी छाती पर
रख देता है अपना सर
कुछ सुकून ढूँढने को
नहीं मिलता है मगर चैन
कराहती ऊगंलियों को,
काँटों सी चुभती हैं
टूटती साँसों की लकीरें
बोझ बन लद जाते हैं
अर्थहीन शब्दों के अम्बार से
नहीं पूरे पड़ते कोई ख़त
नहीं भर पाते अहसासों से
फिर भी डाल कर लिफ़ाफ़े में
भेज देती हूँ तुम्हें
गुरेज़ की कतरने
कि मोहब्बत कम पड़ गयी
उघड़ा रह गया
अंतराल की सर्द ठिठुरन में
दिल का वो हिस्सा
जिसमें तुम हो।