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यादें

यादें

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ये रात भी गुज़र जाएगी जैसे कल दिन भी गुजर गया...

मैं भी गुज़र जाउंगा रफ्ता-रफ्ता सूरज-सा

ढलकर मिलने अपने माझी से बेकरार-सा तड़पकर...

छिप जाउंगा इस स्याह रात के साये मे इंतजार है कयामत का...

हर पल जी रहा हूँ मरने के लिए...

एक सफ़र ख़त्म कर दूसरे की और...

भानु की दावानल सा बढ़ता...

बढ़ता ही जाउंगा...


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