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Padma Verma

Abstract

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Padma Verma

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यादें......

यादें......

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दबा के पाॅंव, आती हैं यादें,

सांसो में मेरे, बस जाती हैं।

जब चाहो, पन्ने पलट लो,

दिल को सुकून दे जाती हैं

यादें .....

दिल को .............. हैं यादें।


बचपन की यादों में, घूमती हूॅं,

तो, याद आती हैं अल्हढ़पन 

की झूले पर ऊॅंचे - ऊॅंचे ....

पेंगें मारना, पापा के देखते ही,

झट कूद जाना ....


चोट की न परवाह कर ...

गिल्ली - डंडे की गिल्ली इतनी

तेजी से उछालना कि काॅंच ..

टूटने के उलाहने घर पर आ 

जाना ....


और फिर डाॅंट - फटकार के बाद,

दो दिन 'न खेल पाने ' की सज़ा

काटना, भाई के सिफारिश के 

बाद, फिर से खेल पाने की,

अनुमति पाना ...

यादें दिल को ..….........हैं।


भयंकर गर्मी में भी, चोरी से 

निकल, सात गोटी और...

नव घर खेलना, वह काली -

खट्टी चूरन के साथ बर्फ के 

गोले खाना.......


ब्रेड वाले की पों-पों की आवाज़

सुन, माॅं से कप केक, बिस्किट

की फरमाइश करना, दीदी के 

बनाए, निमकी, खजूड़ को भाई  

का कुर्सी-टेबल पर चढ़, उतारना ..


और भाई की डाॅंट खुद खा जाना,

कच्चे - पक्के खीर बनाकर भाई 

को खिलाना... छत से कपड़े 

उतारते वक्त,भाई की डरावने 

आवाजों से डर जाना ....

अब ये यादें दिल .. .... .... हैं।


घर आए मेहमानों के खातिर

में बिछ जाना ....न रेस्टोरेंट की,

न नौकर की जरूरत, दस व्यंजन,

दो घंटे में ही, डाइनिंग टेबल पर 

परिवार द्वारा ही सज जाना। 


छोटे घरों में, संयुक्त परिवार के

भाई-बहनोंका एक थाली में खाकर

बड़े होना, ऊॅंचे ओहदों पर नौकरी 

करना, शादी, त्योहार के मौके पर

सबका जुट जाना ......

दिल को सुकून दे जाती हैं।


आज की मशीनी जिंदगी में ...

वो बचपन की अल्हड़पन की 

बातें, वो स्वछंद वातावरण में,

खेलने की खुशी,वो खोमचे

वाले की यादें ..…  

कहाॅं समेट पाऍंगे आज के बच्चे ?


वो खिलखिलाती हॅंसी ....

वो मीठी सी मुस्कान .…

कहाॅं ढूॅंढ पाऍंगे आज के बच्चे ?

यादें दिल को सुकून दे जाती हैं,

दिल को सुकून दे जाती हैं यादें।


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