याद आया था मुझे
याद आया था मुझे


जब अंधेरों ने
बहुत डराया था मुझे
सच कहूं
तेरा ज़िक्र
बहुत याद आया था मुझे
उन्माद ही उन्माद में
मैं कहाँ निकल गया
शहर से चला था
जंगल तक निकल गया
भूल गया पथ अपना
राहें अपनी
मंज़िल अपनी
ऐसा लगता है
मन कहीं भटक गया
रोक नहीं पाया
उस जुनून को
जो हर शख़्स में
छिपा है घात लगाए
बस मेरा ही पलड़ा
भारी था जो
वक़्त मुझ को
निगल गया
यह एहसास
ज़रा देर से
समझ आया था मुझे
जब अंधेरों ने
बहुत डराया था मुझे
सच कहूं
तेरा ज़िक्र
बहुत याद आया था मुझे
लरज़ते होठों की जुम्बिश
खुले काले घने
बालों की नुमाइश में
उसकी स्याह सुर्ख़
झील सी गहरी
आँखों की तलहटी में
कहीं दूर तक
छटपटाहट से जूझते हुए
मेरा दिल जाने
कब मेरे हाथ से फिसल गया
उसके बोलों की खनक
उसके साथ होने की
गर्मजोशी
उसके गालों पर
शबनमी बूंदों की फ़ेहरिस्त
मानो किसी का भी
ईमान डोला सकती हो
बस यही राज़
ज़रा देर से
समझ आया था मुझे
जब अंधेरों ने
बहुत डराया था मुझे
सच कहूं
तेरा ज़िक्र
बहुत याद आया था मुझे