याचना करे धरा !
याचना करे धरा !
रक्त में उबाल हो,
क्रोध की मशाल हो !
धड़कने भड़क रही,
जैसे की भूचाल हो !!
धरती माँ पुकारती,
कहाँ पे मेरे लाल हो !
यदि मेरा ख्याल हो,
न द्वंद न सवाल हो !!
रक्त से करो श्रृंगार,
आँचल ये मेरा लाल हो !
विजयी तुम्हारा भाल,
और शत्रु का कपाल हो !!
असुरजनों का अंत हो,
हों तो मात्र संत हो !
धर्म हो सुपंथ हो,
सृजन हो न की अंत हो !!
उठो उठो बढ़ो बढ़ो,
बढ़ो बढ़ो बढे चलो !
लगा लो मृत्यु कंठ से,
लौह में ढले चलो !!
विजय की भोर हो सदा,
ना हार की निशीथ हो !
ह्रदय में एक भाव हो कि,
धर्म की ही जीत हो !!
बुद्धि और शक्ति का,
प्रमाण आज दो जरा !
काल कि ये मांग है
याचना करे धरा !!