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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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व्यंग्य - हिंदी मान या सिर्फ मेहमान

व्यंग्य - हिंदी मान या सिर्फ मेहमान

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हिंदी हमारा मान है, सम्मान है 

हमारा ही नहीं भारत का गौरव गान है,

हिंदी की बिंदी हम सबका सम्मान, स्वाभिमान है।

पर यह विडंबना भी तो है 

कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी 

हम हिंदी को उसका स्थान नहीं दिला पाये,

जिसकी हकदार है हिंदी 

वो सम्मान कहाँ दे पाये।

हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़ा मनाकर 

हम खुद को ही गुमराह कर रहे,

मन की तसल्ली के लिए बस हिंदी दिवस का 

केवल झुनझुना बजा रहे।

विश्व पटल पर हिंदी को स्थापित नहीं कर पाए 

क्योंकि हम ईमानदार प्रयास का साहस नहीं जुटा पाए,

या यूँ कहें कि हम आप सब

औपचारिकताओं में जीने के आदी हो गए हैं,

सम्मान स्वाभिमान की फ़िक्र हम करते कहाँ हैं 

सिर्फ दिखावे का ढोल पीटकर खुश हो जाते हैं।

हिंदी माथे की बिंदी, देश का गौरव,

राजभाषा है 

सच कहें तो यह सिर्फ ढकोसला है।

ईमानदारी से आंकलन तक नहीं कर पाते 

हिंदी के वास्तविक स्थान का ऐलान करने का

साहस तक नहीं जुटा पाते।

पहले स्थान पर होने का आंकड़ा तक नहीं रख पाते, 

वैश्विक स्तर पर हम हिंदी के पक्ष में 

मजबूत दीवार की तरह नहीं अड़ पाते।

हिंदी दिवस सप्ताह पखवाड़ा मनाकर सो जाते 

हिंदी मेरा आपका देश का मान है 

अपने आप कहकर मुस्कुरा कर रह जाते,

हम हिंदी पर बड़ा गुमान करते हैं, 

और विभिन्न आयोजनों की आड़ लेकर 

बड़ी सफाई से खुद को शर्मिंदगी से बचा लेते हैं,

और इतना भर कहकर रह जाते

कि हिंदी हमारा मान सम्मान है।

अब यह सोचने समझने की जरूरत है 

कि ये हिंदी का सम्मान या अपमान है 

या हिंदी सिर्फ हमारी मेहमान है।



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