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ARVIND KUMAR SINGH

Inspirational

4  

ARVIND KUMAR SINGH

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वतनपरस्ती

वतनपरस्ती

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खूनी दरिन्दे घात लगाकर

एकदम टूट पड़े थे अंधेरे में

फंस गये थे वीर अभिमन्यु

जैसे सैकड़ों गद्दारों के घेरे में


सम्हल सके न धोखे से जब

गद्दारों ने उन पर वार किया

अपनी जान को करके आगे

फिर से देश का नाम किया


तमीज से रह ले हद में अपनी

पहले कड़ी जुबान से टोका था

आखिरी सांस न टूटी तब तक

दुश्मन को सीमा पर रोका था


भारत मां के लालों ने जब

खून की होली खेली थी

निहत्थे थे वो वीर सिपाही

फिर भी टक्कर ले ली थी


लहूलुहान होकर भी तुमने

दुश्मन को सबक सिखाया है

तिरंगे की शान बनी रहे यूं

शहादत को गले लगाया है


गलवान घाटी की गूंज अब

बन आवाह्न गगन को छू लेगी

वतनपरस्ती के जज्बे में देश

पर कुर्बानी को कैसे भूलेगी।


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