वतन शादाब रक्खेंगे
वतन शादाब रक्खेंगे
गुज़ारे साथ जो लम्हें बनाकर ख्वाब रक्खेंगे।
निगेंबां आप ही होंगे तुम्हें महताब रक्खेंगे।
हमारी रूह में बसता क़मर बन मादरे वतन,
भले मुरझाए जाँ औ तन वतन शादाब रक्खेंगे।
रखो बुलंद इरादों को तरक्की आप चूमेगी,
करूँ सदका वतन सजदे जिगर बेताब रक्खेंगे।
मिरे अशआर बन नगमें सुनाएँ देश के किस्से,
भरी जो आग जोशीली उसे ना दाब रक्खेंगे।
ख़ुदा रखे सलामत ख़ास ये भारत हमारा है,
मिटा कर झूठ को नीलम जिगर नायाब रक्खेंगे।
