वसुधैव कुटुंबकम् भाव संस्कार
वसुधैव कुटुंबकम् भाव संस्कार
खानपान वेशभूषा और हम सबका ही व्यवहार,
सदा ही होता है देश-काल-परिस्थिति अनुसार।
सबका ही हित चिंतन आर्य संस्कृति का आधार,
वसुधैव कुटुंबकम् भाव ही हैं भारतीय संस्कार ।
जड़ हो चेतन सब में सतत् होता रहता बदलाव,
कभी धीमा कभी तेज पारस्परिक होता प्रभाव।
बुद्ध बल के भ्रम से ग्रसित हो आता स्वार्थ भाव,
श्रेष्ठता के मद में होता मन में परहित का अभाव।
प्रकृति संग छेड़छाड़ में भूला मानव निज संस्कार।
होता है एकदम बेबस जब प्रकृति मां करती प्रहार।
खानपान वेशभूषा और हम सबका ही व्यवहार,
सदा ही होता है देश-काल-परिस्थिति अनुसार।
सबका ही हित चिंतन आर्य संस्कृति का आधार,
वसुधैव कुटुंबकम् भाव ही हैं भारतीय संस्कार ।
जग में सब सुखी हों कहती आदि संस्कृति हमारी,
प्रकृति संरक्षण से समृद्ध रहीं ऋषि परंपराएं सारी।
गोवर्धन नाग विटप पूजे हैं माता सम नदियां प्यारी,
सर्वे सन्तु निरामया की रही सदा शुभ भावना हमारी।
प्राण उत्सर्ग लोकहित में करने को रहते हैं हम तैयार,
भगत दधीचि भीष्म सम सेना में आज भी ये संस्कार।
खानपान वेशभूषा और हम सबका ही व्यवहार,
सदा ही होता है देश-काल-परिस्थिति अनुसार।
सबका ही हित चिंतन आर्य संस्कृति का आधार,
वसुधैव कुटुंबकम् भाव ही हैं भारतीय संस्कार ।
रहा ज्ञान में पूरब सदा ही इक्कीस देते सबको प्यार,
विश्वगुरु रहा सोन चिरैया नहीं रहा लेशमात्र अहंकार।
कोविड काल में जग ने देखा दरियादिली है बरकरार,
उन्नत भाल संग भारत जगत के नेतृत्व को है तैयार।
सर्वहित का चिंतन करते यज्ञ में निज आहुति दें डार,
भागीदारी करें सुनिश्चित जगत को मानें निज परिवार।
खानपान वेशभूषा और हम सबका ही व्यवहार,
सदा ही होता है देश-काल-परिस्थिति अनुसार।
सबका ही हित चिंतन आर्य संस्कृति का आधार,
वसुधैव कुटुंबकम् भाव ही हैं भारतीय संस्कार ।