वसुधैव कुटुम्बकम
वसुधैव कुटुम्बकम
ओ हरे-हरे वृक्ष देते हों ठंडी छाव
भीनी सी बारिश की मृदुल मुस्कान
लहराती सी धारा ,कल-कल के स्वर
ओ प्यारी नदिया ना किया कोई हेय
ऊँचे से अम्बर से प्यारे पिता से
करते हो रक्षा तुम लम्बे पहाड़
ज्ञान की शिक्षा ,दिया मेरे दाता
राह दिखाया मेरे ऋषियों ने
देश की हर वाजी को कैसे हम जीतेंगे
इसका उदाहरण है,वीर सम्राट देश के
वसुंधरा के चरणों पर समर्पित
अपनी हर दिल की दे दे दुआ
हर जगह है मेरी है मेरा जहांन
ना माना मेने इसको कोई अनजान
जीना मेरा इसमें मरना मेरा इसमें
यही तो है मेरा कटुम्ब मेरा ऐसा
जैसा कोई है
वसुधैव कुटुम्बकम
वसुधैव कुटुम्बकम