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Vimla Jain

Action Classics Inspirational

4.7  

Vimla Jain

Action Classics Inspirational

वृंदावन में रात का निधिवन

वृंदावन में रात का निधिवन

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✨ रात का निधिवन दिन ढल चुका था।
 वृंदावन की गलियों में मृदु वायु बह रही थी, मंदिरों की घंटियाँ धीरे–धीरे शांत हो रही थीं, और यमुना के जल पर चाँदनी रेशमी चादर तान रही थी।
 मंदिर के सेवक ने अंतिम आरती उतारी, दीपक बुझाए, तेल की सुगंध हवा में घुली, और द्वार पर ताला लगाते हुए धीरे से बोला— "अब यह संसार नहीं, अब प्रभु की रात्रि है।" निधिवन के चारों ओर शांति छा गई।
 एक ऐसी शांति जिसमें ध्वनि नहीं, पर अनुभूति अनंत थी। पेड़ झुक गए, जैसे किसी अदृश्य आदेश का निवेदन हो; लताएँ काँप उठीं, जैसे किसी मधुर बाँसुरी की धुन ने उन्हें स्पर्श किया हो; और हवा रुकी— मानो रात्रि स्वयं प्रणाम कर रही हो।
 कहते हैं, उस क्षण धरती से भार हट जाता है, और आकाश अपना द्वार नीचे झुका देता है। तभी… न सुनाई देने वाला संगीत, न दिखाई देने वाला प्रकाश, पर मन की आँखें खुल सकतीं तो देखतीं — राधा रानी, मधुर मुस्कान, चरणों में कदंब की छाया, और कृष्ण — वृंदावन के स्वामी नहीं, प्रेम के शतमुख कवि।
 फूलों की वर्षा नहीं, फूलों की अनुभूति थी; नृत्य नहीं, आत्माओं का मिलन था।
 वह रास नहीं था, वह जीवन के अर्थ का रहस्य था।
 जहाँ प्रेम माँगता नहीं, बस दे देता है।
 जहाँ समर्पण बोझ नहीं, आनंद है।
 और जब भोर की पहली रश्मि ने निधिवन की कली को छुआ, तो वन थमा हुआ-सा लगा। जैसे किसी पवित्र श्वास ने उसे अब भी सँभाले रखा हो।
 कुंजों में पत्ते बिखरे थे, लताएँ थोड़ी खुली हुईं, और हवा में अदृश्य कण तैर रहे थे — भक्ति, प्रेम और शांति के।
 साधारण आँखें कुछ न देख पाईं, पर भक्त बोल उठे — "आज रात भी राधा-श्याम आए थे।" निधिवन फिर मौन हो गया।
पर वह मौन आवाज़ों से भारी था — भक्ति की, आस्था की, और अमर प्रेम की।
 क्योंकि रात का निधिवन किसी एक रात की कथा नहीं, हृदय के जागरण की अनंत यात्रा है।  


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