वृद्धावस्था
वृद्धावस्था
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शैशवावस्था और युवावस्था को पार कर
इंसान पहुँचता है अपने अंतिम पड़ाव में
जिसमें जीवन हो जाता है थका थका सा
यही सच्चाई है जिसे कहते हैं वृद्धावस्था
हर किसी के जीवन में यह काल आता है
इसके नाम से ही हर इंसान घबरा जाता है
सभी जानते हैं जीवन की इस सच्चाई को
पर कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर पाता है
परमात्मा से बढ़ती ही जाती है नजदीकियां
घेर लेती शरीर को कई प्रकार की व्याधियां
उम्र के इस पड़ाव में इंसान थम सा जाता है
जिम्मेदारियां पूर्ण कर वह विश्राम चाहता है
बच्चों की खातिर जीवन भर करता है काम
इतनी व्यस्त जिंदगी में मिलता नहीं आराम
अनुभवों से परिपूर्ण होता है यह वृद्धावस्था
नहीं समझना चाहिए इसे दयनीय अवस्था
श्रवण कुमार जैसी हो अगर सबकी संतान
तो बुढ़ापा हो जाता है हर कष्टों से अनजान
पर कमी नहीं इस दुनिया में ऐसे संतानों की
जो वृद्धावस्था को एक अभिशाप समझते हैं
जीवन का बोझ समझकर अपने बुजुर्गों को
बड़ी आसानी से वृद्धाआश्रम छोड़ आते है
न जाने क्यों लोग वृद्धों को बोझ समझते हैं
सहारा नहीं देकर उनका तिरस्कार करते हैं
जबकि वे जीवन के अनुभवों का खजाना है
यह बात सब को समझना और समझाना है
जिंदगी जीने का तजुर्बा होता है इनके पास
कभी होने ना दें इन्हें अकेलेपन का एहसास
मान सम्मान दे उन्हें रखें सदा उनका ध्यान
आदर्श होते हैं वो हमारे हैं परिवार की शान
दिल से ना लगाएँ उनकी कड़वी बातों को
बिखरने ना दे उन्हें थाम ले उनके हाथों को
वृद्धावस्था ना अभिशाप है और ना वरदान
खुलकर जिए इसे ना समझे मौत का पैग़ाम