Prakarm Shridhar

Romance

4.7  

Prakarm Shridhar

Romance

वक़्त

वक़्त

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ज़िन्दगी है समुन्दर, एक बूँद सकूं की ढूंढता हूँ,

राही हूँ मुसाफिर हूँ फ़कत अपनी मंज़िल ढूंढता हूँ। 


ख्वाहिशों के पहाड़ हैं बने पर रास्ता नही मिलता,

इन्ही डगमगाती गलियों में ख्वाइशों की मंज़िल ढूंढता हूँ। 


गर साथ देती किस्मत तो हमारी भी हैसियत होती,

बस अब इन हाथों की लकीरों में वो मक़ाम ढूंढ़ता हूँ। 


वक़्त वक़्त का खेल है, कभी वो हमें

आज़माता है कभी हम उसे आज़माते हैं,

इसी कश्मकश में मैं अपना अच्छा वक़्त ढूंढ़ता हूँ। 


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