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Prakarm Shridhar

Others

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Prakarm Shridhar

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क्या हम आज़ाद हैं।

क्या हम आज़ाद हैं।

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एक सवाल उलझाता है मुझे कभी कभी,

क्या हम आज़ाद हैं इस आज़ादी में भी।

क्यों फासला है अभी भी लड़के और लड़की की पढ़ाई में,

क्यों फर्क है स्त्री और पुरुष की कमाई में।

क्या बजती हैं उतनी ही तालियां

जब एक बेटी कमाल कर जाती है ,

क्यों अंतर है दोनो की वाह वाही में।


गर आज़ाद है तो मज़दूर दबा क्यों है,

गर आज़ाद है तो इंसान यहाँ थका क्यों है,

है गुलामी आज भी पर तानाशाही बदल गए,

तब देश के लिए लड़े थे, आज पैसे के लिए लड़ गए.


हम आज़ाद तब होंगे जब हमारे ख्यालात बदलेंगे,

बदलेंगे फासले अपनों में, जब हमारे जज़्बात बदलेंगे।

मेरा देश महान था, और भी महान हो जायेगा,

जब हर शख्स एक दूसरे के काम आएगा,

ना रहेगा फासला दिलों में,

तब हर शख्स सही में आज़ाद कहलायेगा।

तब हर शख्स सही में आज़ाद कहलायेगा।


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