वक़्त का पहिया
वक़्त का पहिया
है कालचक्र की माया दुनिया
कौन यहाँ बच पाया है
जिसके नसीब में जितना दिया रब ने
उसको बस उतना ही मिल पाया है।
समय का पहिया कहाँ देखता ये
कौन भूखा है और किसने खाया है
निर्लिप्त होकर चलता है वो
कभी ख़ुशी कभी ग़मों का साया है।
ख़्वाहिश ग़र कभी ख़ुदा मेरी पूछे
मैं वक़्त को ले जाऊँ थोड़ा पीछे
रोक दूँ इस मृत्यु दूत को वहीं
चला था जहाँ से इंसानों के पीछे।
हे मानव उठो बनकर कृष्ण अब कुरुक्षेत्र में
काल का पहिया उठा कर उसकी गति मोड़ दो
दो आवाज़ अपने पुरुषार्थ और ज्ञान को
अदम्य साहस विवेक बुद्धि से मृत्यु चक्र तोड़ दो।
ग़र है ये ज़िन्दगी वक़्त का पहिया
तो वापस वो दिन भी फ़िर लौटेगा
ज़िन्दगी की महफिलें होंगी गुलज़ार
खिलेगी फ़िर ख़ुशियों की बगिया।
अश्कों में जीवन का तर्पण मत करो
दुखों को जीवन का दर्पण मत करो
हर रात की सुबह होती है ज़रूर
निराश न हो मन को निर्जन मत करो।