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Kanchan Jharkhande

Abstract

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Kanchan Jharkhande

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वो "स्वाति"

वो "स्वाति"

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तारागणों के विस्फोट से 

बन विचित्र इठलाई

उपग्रहों पर पड़ भारी, 

"स्वाति" नक्षत्र कहलाई 

बन नक्षत्र से "मोम"


हरे पत्तों पर बैठी जाये

गिरे समुन्दर में अगर 

"मोती" बन पनप जाये

विचित्र विडम्बना यह भी है


स्वाति ही सरस्वती कहलाये

ठहर-ठहर के कण्ठ में

सुर-लय सी बह जाए

गिरे सर्प के मुख अगर


नक्षत्र से "विष" बनाये

निर्मल काया मन पावन सी

वो "स्वाति" सरल कहलाये।


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