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Soniya Jadhav

Abstract Others

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Soniya Jadhav

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वो सतरंगी पल

वो सतरंगी पल

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जीवन के वो सतरंगी पल,

उम्र में आये बदलाव से धूमिल ना होने दूंगा।

माना चेहरे पर झुर्रियाँ आ गईं है थोड़ी,

हड्डियां आपस में टकराने लगीं हैं।

लेकिन तुम देखो सिर्फ दिल मेरा,

वहाँ कोई सिलवट नहीं है।


गीला तौलिया सोफे पर भूल जाने की आदत पर मेरी,

तुम्हारा गुस्से से चिल्लाना।

और सबके सामने मुझे " सुनो " कहकर बुलाना।

मेरा बहाने बनाकर तुम्हें अपने पास बुलाना,

मोगरे की खुशबू को तुम्हारे बालों पर सजाना।

कैसे भुला दूँ?


तुम्हारा रोज़मर्रा की साधारण सी जिंदगी को,

गर्म समोसों और चाय की चुस्कियों से ख़ास बनाना।

जीवन के ये सतरंगी पल,

स्मृतियों से कभी ना धूमिल होने दूंगा। 

तुमने ख़ास बनाया है मुझे मेरी नजरों में,

वादा करता हूँ मैं तुमसे,

उम्र के इस पड़ाव में भी।

तुम्हारा इंद्रधनुष कभी फीका ना पड़ने दूंगा।



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