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Prem Bajaj

Romance

3  

Prem Bajaj

Romance

वो रात

वो रात

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उफ़्फ़ कैसे भुला दूँ वो रात, हुस्न था मेरी बाँहो में जिस रात ।

दुल्हन बन कर वो सेज पर थी बैठी, सेज को महका रही थी वो जिस रात।


फूलों की सेज पे इक कमल का फूल था खिल रहा जिस रात ।

मेरे चाँद के सामने पूनम का चाँद भी लग रहा था फ़ीका जिस रात ।


चाँद के चेहरे से घूंघट का बादल जो हटाया हमने प्यार का रँग रूख़सारों

पे उतर आया जिस रात ।

सरका जो दुपट्टा सर से आ गया था शर्मो हया का पर्दा जिस रात ।


मेहरबानियों से इश्क की परवाना तड़प रहा था तो शमाँ भी सँग में जल रही थी जिस रात ।

बाँहो में लेकर चुराई जो लबों की लाली,साँसे भी शोला बन रही थी जिस रात ।


पायल को हवाला दिया चुप रहने का, मगर वो पुरजो़र शोर मचा रही थी जिस रात ।

शफ़्फ़ाक बदन सँगेमरमर सा ताजमहल लग रहा था जिस रात ।


कैसे भुला दूँ वो रात, हुस्न जलवे बिखेर रहा था जिस रात ।

इश्क की छुअन से हुस्न का रोम-रोम सुलग रहा था जिस रात ।


इश्क की निगाह भी थी क़ाफिर, और हुस्न को भी होना था ख़राब जिस रात ।

हुस्न को बेहिजाब होना था, इश्क को भी ज़र्रे से आफ़ताब होना था जिस रात ।


थी कयामत की वो रात, इश्क की बाँहो में हुस्न पिघल रहा था धीरे-धीरे जिस रात ।

आती है बार-बार मुझको याद वो रात, इश्क के आग़ोश मे हुस्न था मदहोश जिस रात। 


कैसे भुलूँ वो रात जमीं -आसमाँ मिल रहे थे जिस रात ।

उफ़्फ़ कैसे भूला दूँ वो रात, हुस्न था मेरी बाँहो मे जिस रात।


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