वो रात
वो रात
उफ़्फ़ कैसे भुला दूँ वो रात, हुस्न था मेरी बाँहो में जिस रात ।
दुल्हन बन कर वो सेज पर थी बैठी, सेज को महका रही थी वो जिस रात।
फूलों की सेज पे इक कमल का फूल था खिल रहा जिस रात ।
मेरे चाँद के सामने पूनम का चाँद भी लग रहा था फ़ीका जिस रात ।
चाँद के चेहरे से घूंघट का बादल जो हटाया हमने प्यार का रँग रूख़सारों
पे उतर आया जिस रात ।
सरका जो दुपट्टा सर से आ गया था शर्मो हया का पर्दा जिस रात ।
मेहरबानियों से इश्क की परवाना तड़प रहा था तो शमाँ भी सँग में जल रही थी जिस रात ।
बाँहो में लेकर चुराई जो लबों की लाली,साँसे भी शोला बन रही थी जिस रात ।
पायल को हवाला दिया चुप रहने का, मगर वो पुरजो़र शोर मचा रही थी जिस रात ।
शफ़्फ़ाक बदन सँगेमरमर सा ताजमहल लग रहा था जिस रात ।
कैसे भुला दूँ वो रात, हुस्न जलवे बिखेर रहा था जिस रात ।
इश्क की छुअन से हुस्न का रोम-रोम सुलग रहा था जिस रात ।
इश्क की निगाह भी थी क़ाफिर, और हुस्न को भी होना था ख़राब जिस रात ।
हुस्न को बेहिजाब होना था, इश्क को भी ज़र्रे से आफ़ताब होना था जिस रात ।
थी कयामत की वो रात, इश्क की बाँहो में हुस्न पिघल रहा था धीरे-धीरे जिस रात ।
आती है बार-बार मुझको याद वो रात, इश्क के आग़ोश मे हुस्न था मदहोश जिस रात।
कैसे भुलूँ वो रात जमीं -आसमाँ मिल रहे थे जिस रात ।
उफ़्फ़ कैसे भूला दूँ वो रात, हुस्न था मेरी बाँहो मे जिस रात।

