वो रात
वो रात
हाँ वो अंधेरी रात थी,
अनजान सड़क थी,
मेरी आवाज़ किसी को,
पुकार रही थी,
शायद मानो खुद को,
उस रात के लिए
कोस रही थी,
अजनबी था कोई
छू रहा था मुझको
खुद की नज़रों से,
शायद मेरी आँखें
कुछ तलाश रही थी,
करोड़ो की भीड़ मुझे
चुप चाप देख रही थी,
शर्मशार मैं हो रही थी,
हुआ बहुत कुछ,
महीनों-सालों बाद,
दीप- दान हो या मार्च,
आंदोलन हो या धरना,
पर मानो ये मोर्चे मुझे
कुछ हिदायत दे रहे थे,
उस दिन करोड़ों की भीड़
मैं तलाश रही थी और
आज नज़रों में थे मेरे
सब पर में न थी।।