वो ख़ामोश निगाहें।
वो ख़ामोश निगाहें।
अब वो ख़ामोश निगाहें ख़ामोश तो रहने लगी है,
अब वो ज़िन्दगी से रूठ कर ही तो रहने लगी है।
हर वक़्त अभी चुपके से हमको देखा करती है,
कहीं निगाहें रख कर हमको तो सदा देखती हैं।
इशारे इशारे में नज़रों से कह देती सब वो हमको,
कहां पर मिलना इशारों में कह जाती थी हमको।
उनकी नज़र कहती उन्हें मुझसे बेइंतहा प्रेम हमेशा,
तड़पाना छोड़कर कहोगे सिर्फ़ मुझसे प्यार हमेशा।
पहली बार मिलन तो पहले महबूब तुम सदा हमारे,
झुकी नज़र से देखकर हुए दीवाने तेरे है सदा प्यारे।
झुकी-झुकी निगाहों से हमारा दीदार वो करते रहते,
यकीन बहुत है कि ग़ैर होकर भी हमसे प्यार करते।