वो जब अंधेरा सा होने को है
वो जब अंधेरा सा होने को है


वो जब अंधेरा सा होने को है
शाम जवान होके रात होने को है
वो बैठे अपनी घर की छत पे मनमाने से हैं
और पीछे जो पुल है उसपे ट्रेन आने को हैं
अंधेरे में ट्रेन की खिड़की से झांकती वो रोशनी
ये कभी ट्रेन में, कभी एक दूजे में खो जाने को हैं
मुंडेर पे बैठे पंछी भी, चोबारे में लेटी आंटी भी
साथ बैठे बच्चे भी, कुछ पल सब मुस्कुराने को हैं
वो पुल के आसपास ठहरा सा , गहरा सा अंधेरा
वो दूर एक झोपडी, उसमे कोई दीप जलाने को हैं
वो अंधेरे को छेड कर, वो टायरों की आवाज़ कर
एक साथ सटे, दोस्त से बने ट्रक निकलने को ह
ैं
वो नदी जो पुल के भी पीछे है उसमे जो कछुहे है
वो झाड़ियों के सांप, मछलियां अब सब सोने को हैं
ये चांद की रोशनी में किले का वो पेड़ दिख रहा है
किले की रोड से लगता है कोई गाड़ी उतरने को हैं
मोहल्ले की गली भी रोशनी में नहा के सुंदर हो गयी
अब कुछ परिया भी अपने घरों से निकलने को हैं
वो कुल्फी वाले की टन टन की आवाज़, वो उसका साज
वो नाना को निहारते बच्चे , आज ये कुछ पाने को हैं
वो पार्क में टहलते, एक साथ खेलते , वो बच्चे चहकते
समा ये सारे, इतने प्यारे जीवन को जैसे महकाने को हैं!