वो इंसान नहीं
वो इंसान नहीं
कैसे कह दूँ उसे इन्सान
जिसने चाक़ू की धार से
उस नन्हें बच्चे को
ख़ून से नहलाया होगा
कैसा निर्दयी था
जाने कौन सा भयावय विचार
उसके निष्ठुर मन में आया होगा
न दहला होगा उसका दिल क्या
जब बच्चा दर्द से छटपटाया होगा
मेरी आँख भर आयी जब
उस अंजान नन्हें फ़रिश्ते के लिये,
सोचो क्या बीता होगा उसकी माँ पर
जब दम तोड़ने से पहले उसने
माँ बोल के जब कराहा होगा
पास नहीं थी वो पर
बच्चे की आह से दिल उसका
कितना घबराया होगा
कितना टूट गया होगा वो पिता
जो पढ़ कर कुछ बनाने के लिए
अपने छोटे से शहज़ादे को
स्कूल छोड़ के आया होगा
न आयेगा वापस उसका बेटा
ऐसा ख़्याल भी
न कभी ज़हन में आया होगा
कहाँ खो रहा है इंसान
कैसे खो रही है इंसानियत
न डर, न दर्द, न दया।
