वो दिन नहीं रहे अब
वो दिन नहीं रहे अब


वो रातों को भूत के डर से जल्दी सो जाना
और सुबह पापा के प्यार से उठाने से उठना
वो बस कार्टून्स देखना
और अपनी ही दुनिया में मस्त रहना।
वो माँ से खुद रोटी बनाने की ज़िद करना
और पापा का बहुत खुश होके खाना
वो लोगों का हमें नासमझ कहलाना
और कुछ भी ना बताना।
वो छोटी छोटी बातों पर रो देना
और माँ पापा को जाकर दिखाना
वो नानी के घर जाने की खुशी होना
और अपने घर आने का गम होना।
वो रोते रोते स्कूल जाना
और स्कूल से हस्ते खेलते घर आना
वो हमारा सबको अच्छा समझना
और सब से प्यार जताना।
क्योंकि अब तो बस रह गया है
वो देर रात तक मोबाइल चलना
और सुबह अलार्म से खुद को उठाना।
वो बस नेटफलिक्स और
यू ट्यूब की दुनिया में खो जाना
और फिर खुद को डिपरेशन में पाना
लोगों का हमें समझदार कहना
और उन्हें समझने की इच्छा जताना।
कहीं बाहर आने जाने में गम होना
और बस घर के एक कोने में बैठें रहना
कॉलेज के लिए घर से मुस्कुराते हुए निकलना
और बाहरी दुनिया से घबराते हुए घर आना।
अब तो बस रह गया है
कोन कैसा है ये पता लगाना
और फिर उसी हिसाब से उनसे पेश आना।