वो भी एक दौर था
वो भी एक दौर था
वो भी एक दौर था, जब तू मेरे करीब था,
सारेे अरमान मेरे तुझसे,
गम कही पास न था ,
बस तू मेरे साथ था,
तेरी खुशबू मेरे सांसों में थी
जुस्तजू कोई बाकी न थी,
कुछ ही महीनो मे तेरा नकाब हट गया,
सच कहूँ जैसे गहरा बादल कही छट गया
अंधेरे मे थी, महरूम थी हर बात से,
तेरी हकीकत जान मानो,
आँखों पर परदा सा पड़ गया था,
डरी क्यू की डराई गई थी,
यूं न जाने किस बात बात पर हिंसा का शिकार
हुई थी,
अब तो हर बात पे जैसे गुस्सा निकालने की कोई
निर्जीव पुतला सी हो गई ,
डर गई थी सहम सी गई मौका देख उस घर को छोड़ निकल गई ,
जिसे सजाया था मैने सपनों से भी ज्यादा सुंदर,
पर डर ने मुझे दबा रखा था,
जीने की चाहत दिल के किसी कोने में दबा रखा
था,
खुद की जान बचाकर ,
मैं जो घर से निकली ,
हजारों सवाल सिर्फ मुझसे हुए,
किसी ने भी न उससे पूछा,
जवाब देते देते मैं थक गई,
अब जीना चाहती हूँ,
कुछ करना चाहती हूँ,
मैं अब खुद के लिए कुछ करना चाहती हूँ,
कड़ी मेहनत और लगन से,
खड़ी हूं आज़ अपने दम पे,
ना सहों ना सहना है ,
ऐसे में कुछ कर गुजरना ,
रहम पर नही खुद के पैरो पर खड़ा खुद को
देखना चाहती हूँ,
खुल कर खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं,
किस बात का डर है क्या तू दुर्गा से कम है ,
शक्ति का तु रूप धर अब ऐसा स्वरूप बन ,
कि देख यही जमाना तेरा होगा,
डर मत निकल वहा से जहा तेरा सम्मान नहीं,
मत सह कोई अपमान ,
ना कर इस बात का इंतजार,
की वो सुधर जाएगा ,
फिर वही मान सम्मान लौटाएगा,
ख़ुद का कर पहले सम्मान ,
नहीं सहेंगे अब अपमान,
हर हिंसा को कहो अब ना,
खुद पर करो विश्वास,
ख़ुद को करके मजबूत हर बार,
खुल कर हंस,
की तेरा वक्त लौटेगा ,
की तेरा स्वाभिमान तेरे पास लौटेगा ,
अब मैं हँसना चाहती हूँ खुलकर ,
फिर वही हसीं फिर हंसना चाहती हूं,
मै खुद के लिए फिर से जीना चाहती हूँ.