वो बेटी
वो बेटी
सपने लिए कुछ आंखो मे
चली थी वो बेटी
सफलता की पहली सीढी पा
बहुत खुश थी वो बेटी
मां-बाप को खुशहाल जिंदगी
देना चाहती थी वो बेटी
रोज सपनो की सीढी
चढ़ती जाती थी वो बेटी
रोज सुबह सपनो की राह पर जाती
और शाम को आती थी वो बेटी
ना जाने क्यों एक दिन
घबराई थी वो बेटी
कभी रोई कभी
मुसकुराई थी वो बेटी
ना जाने उस दिन
क्यों घबराई थी वो बेटी
अगले दिन देर रात तक
घर ना आई थी वो बेटी
कुछ हैवानो के चुंगल से
बच ना पाई थी वो बेटी
उन हैवानो के नोचने पर
खूब चिल्लाई थी वो बेटी
कोई बचाएगा उसे
यह सोच पुकार लगाई थी वो बेटी
बहुत रोई और गिढगिढाई
पर उन हैवानो से लड ना पाई थी वो बेटी
मां परेशान हो सोचती रोज शाम तक आती
पर आज क्यों ना आई थी वो बेटी
जो सुबह मुसकुराई गई
अब कफन मे लिपटी आई थी वो बेटी
मां सोचकर पछताई
उस दिन क्यों घबराई थी बेटी
बस यही बता ना पाई थी वो बेटी।।
