खाकीवर्दी की मनमर्जी
खाकीवर्दी की मनमर्जी
खाकी वर्दी तेरी मनमर्जी ढाती जुर्म हजार है
ए कैसा अत्याचार है ए कैसा भ्रष्टाचार है
न्याय मांगने वालों पे गिरती मौत की दीवार है
ए कैसा अत्याचार है ए कैसा भ्रष्टाचार है
दो भाई आपस में भिड़े तो पहुंच गये वो थाने
न्याय की उम्मीद लेकर फरियाद तुम्हें सुनाने
पर तु बन बैठा यमराज मची चीख पुकार है
ए कैसा अत्याचार है ए कैसा भ्रष्टाचार है
किस मदमस्ती में तु इतना फूल गया है
वर्दी की गर्मी में तु इंसानियत भूल गया है
तेरी बेरुखी से उजड़ा एक परिवार है
तुझको धीक्कार है तेरी वर्दी को धीक्कार है
तेरे जैसे मक्कारो ने वर्दी की मान गिराया है
तेरे जैसे दरिन्दों ने वर्दी पर दांग लगाया है
तेरे जैसे भेड़ियों ने वर्दी को बेच के खाया है
तेरे जैसे कारों ने गरीब का घर जलाया है
गोपीगंज थाने की घटना ने वर्दी को शर्मशार किया है
वर्दीधारी गुन्डों ने वर्दी की इज्जत को तार तार किया है
तुम पुलिस नहीं हो सकते हो तुम पुलिस के नाम पर धब्बा हो
तुम आतंक के पर्याय हो आतंक के तुम अब्बा हो
तुमको क्या मालूम इंसानियत
तुम इंसान हो तो जानों
मानवता को तुम क्या परखो
मानव हो तो पहचानों
तेरे वर्दी का घमंड एक दिन तुमको खाएगा
उस गरीब परिवार का आँसू बेकार न जाएगा
होगा न्याय जरुर विधाता का फैसला आएगा
याद रहे तु भी उस दिन रोएगा गिड़गिड़ाएगा