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ADITYA MISHRA

Classics Others Children

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ADITYA MISHRA

Classics Others Children

वो बचपन

वो बचपन

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वो बचपन भी कितना सुहाना था, 

जिसका रोज एक नया फसाना था।

 

कभी पापा के कंधो का, 

तो कभी मां के आँचल का सहारा था। 

 

कभी बेफिक्रे मिट्टी के खेल का, 

तो कभी दोस्तो का साथ मस्ताना था।

 

कभी नंगे पाँव वो दोड का, 

तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था।

 

कभी बिन आँसू रोने का,

तो कभी बात मनवाने का बहाना था

 

सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे, 

ना कुछ छिपाना और दिल में जो आए बताना था।


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