STORYMIRROR

Rohini Prajapati

Abstract

3  

Rohini Prajapati

Abstract

वो बचपन

वो बचपन

1 min
217

न जाने वो बचपन कहाँ गया ...

न जाने वो कागज़ की कश्ती कहाँ गई!


जीवन के भागम भाग में,

सही गल़त के पहचान में,

हमने पलट कर भी ना देखा....

खो गए थे हम इस संसार में


काश वो बचपन लौट आता..

काश एक मौका मिल जाता

चलाते एक कागज़ की कश्ती हम भी...

जिंदगी जी लेते हम भी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract