STORYMIRROR

Sri Sri Mishra

Inspirational

4  

Sri Sri Mishra

Inspirational

वन जंगल

वन जंगल

1 min
348

हाँ मैं जंगल हूँ.....

मुझमें कुछ आग सुलग रही है....

तुम मानवों का कुकृत्य जो उगल रही है....

तुम्हारी हर आरी की क्रूर वार.....

मुझ पर सदैव निरंतर भारी है.....

मुझ में समाया वह श्वेत श्वेत हिमनद...

जिसका पिघलना अनवरत जारी है....

हांँ मैं जंगल हूंँ.....

जिस स्मरण का तुम्हें विस्मरण हुआ है

हूंँ मैं तुम्हारे जीवन की औषधि और रोटी

युगो से तुम्हें जीवन देने की मैं हूँ बाह जोटी

हम ही तुम्हारे पूर्वज मानो तो पुरखौती हैं..

मुझे संजोना तप कर जीवन में तुम्हारी चुनौती है....

सुगंधित वन और हरियाली का है जो पुरातत्व...

अनमोल खजाने का वह स्तंभ धरती पर है जड़ा....

मानो तो तुम्हारे जीवन की आन बान गरिमा का..

आसपास है वह स्वर्ण इतिहास खड़ा......

हांँ मैं जंगल हूंँ.......

कह रहा हूंँ अब तुमसे मेरे अस्तित्व को बचाना...

अब तुम्हारे लिए यह है कड़ी जंग....

जिससे बना रहे जीने का तुम्हारे ...

मूल मंत्र सहारा हम प्रकृति के संग...

हांँ मैं जंगल हूंँ.....

सुनो कान लगाकर ध्वनि बह रही है जो मुझसे हवाएंँ..

सांँसे मैं दूंँगा जो तुम्हें जीने की..

ना मिलेगी वह तुम्हें कहीं से कितनी भी दे कोई दुआएंँ..

कभी गुजरना हमारे अनजान पथ रास्तों से..

कह रही होगी तुम्हारी सभ्यता का वजूद हर पन्नों से..

हांँ मैं जंगल हूंँ ..कल भी था ..अगर चाहोगे तो मैं हमेशा रहूंँगा..



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational