वक्त और इश्क
वक्त और इश्क


बड़ा वक़्त गुज़रा की,
इश्क़ के सिवा कुछ किया नहीं,
कुछ मोहलत और दो मुझे,
ये नए सलीके सीखने के लिए!!
ये जो मेरा वहम सा है,
ज़रा पैरहन से झाड़ने दो मुझे,
बाकी जो दिल में है,
उसे वक़्त चाहिए निकालने के लिए!!
तुम तो बदले पर हर कोई,
ऐसा दिलदार कहाँ होता है,
लोग मेरे जैसे भी हैं,
जिन्हें वक़्त लगता है बदलने के लिए!!
रम गया हूँ उन लम्हों में मैं,
क़ैद होता है भंवरा पंखुड़ियों में जैसे,
बस उस सुबह का इंतज़ार मुझे,
इन अँधेरी दीवारों से रिहाई के लिए!!
मेरे बातों से सहमत न भ
ी हो,
पर प्यार तो तुम्हें भी था,
उस प्यार का वास्ता है तुम्हें,
मुझे वक़्त दो ज़रा ढलने के लिए!!
ये जो मर्ज़-ए-इश्क़ है,
परेशान इससे मैं खुद भी हूँ,
पर अब हो तो गया है,
लगेंगे कुछ रोज़ अभी ठीक होने के लिए!!
जो भी किया ज़िन्दगी में,
मेरे दोस्त बेइंतिहां किया मैंने,
मेरे जज़्बातों को कुछ वक़्त तो दो,
जल के ख़ाक होने के लिए!!
गिनते हैं आखिरी कुछ साँसे,
ये घायल पड़े जज़्बात मेरे,
क़ब्र तैयार है इनकी मेरे यार,
ज़रा कंधा तो दो दफनाने के लिए!!