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" विवाह का मखोल "

" विवाह का मखोल "

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शादी एक पवित्र बंधन है

दो परिवारों का

मेल हो जाता है !

समाज के आशीष से

घर संवर जाता है

एक संस्कृति एक भाषा

एक विचार से ही घर जगमगाता है

हम कभी दृग्भ्रमित हो जाते हैं

नादानियां करके हम पछतातें हैं

आवेग में आके भ्रमित

हो जाना शोभा नहीं देता है

मिथ्या इन बंधन को

क्षणिक मान लेने से

क्रमशः टूट जाता है

आने वाले कल की हमें चिंता है

ताल और लय का

संगम यदि न हो

तो संगीत अधूरा रहता है

कहने को तो आप कहेंगे

नया जमाना आया है

पर अपने ही दिलों से पूछें

क्या किसको यह कभी भाया है


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