विश्वास
विश्वास
अविश्वास और विश्वास में जो अंतर है......
व्यथा अज्ञानता की बारीकियों का वह मन्वंतर है....
अब तक जो सदियों से भटक रहा अंधकार सर्वत्र...
अंतः प्रकाश बना था पहेली मिथक मात्र.....
विलुप्त होता वह गहन कुंप का द्वार......
वो लौ जलकर करती जीवन का उद्धार.....
जब होता जीवन में गुरु प्रवेश प्रकाश....
धैर्य सा मन होता शांत ह्रदय नीला आकाश..
उस पवित्र झोंके से मन की खिड़कियांँ खुल जाती..
जो सदियों से उस अंधेरे कुंप को ना भेद पाती...
भर गया पाकर द्वैत ज्ञान.. प्रकाश पुंज जन्य...
अंतर्मन में गूंज रही बात धुन राग साज..
जाता रहा वह अंँधेरा जो था अब तक शून्य..
कल तक जो कोलाहल में गूंँज रहे थे भ्रांत...
नतमस्तक हो ..विनम्र हो रहे आज वह शांत..
गुरु का स्पर्श सुगंधित जीवन को कर रहा....
मन रुपी ह्रदय की खिड़की लोबान चंदन सा महक रहा।
